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जॉन ड्राइडन का काव्य सिद्धांत और आलोचना सिद्धांत

जॉन ड्राइडन का काव्य सिद्धांत और आलोचना सिद्धांत

जॉन ड्राइडन 17वीं सदी के एक प्रमुख अंग्रेजी कवि और आलोचक थे। उनके काव्य सिद्धांत और आलोचना सिद्धांत ने अंग्रेजी साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने काव्य के स्वरूप, उद्देश्य और भाषा पर गहराई से विचार किया।
  • काव्य का सम्बन्ध मानव-प्रकृति से है।
  • वह मानव-प्रकृति का मानस-चित्र है। 
  • वह चित्र यथार्थ होना चाहिए। 
  • उसमें सप्राणता होनी चाहिए। 
  • काव्य का लक्ष्य है आनन्द और शिक्षा देना।
वस्तुतः ड्राइडन काव्य को मानव-प्रकृति का 'वर्णन' नहीं, वरन् मानस-चित्र ही मानते हैं। वर्णन स्थूल कथन है और मानस-चित्र संकेत, जिसमें कल्पनात्मक आनन्द को भी स्थान प्राप्त है। उनके अनुसार - “कला की सर्वाधिक पूर्णता इस बात में है कि वह अपने को अव्यक्त रखे।" इस प्रकार अंग्रेजी समीक्षा- ड्राइडन 'कल्पना' को अधिक महत्व देने वाले प्रथम मौलिक समीक्षक हैं। 
स्थान की एकता के विषय में उनका मत है कि- “सत्य से समीपता तो तभी सम्भव है जब विभिन्न स्थलों को इस प्रकार सँजोया जाए कि विभिन्न दृश्यों के एक ही शहर व नगर के विभिन्न स्थलों का संकेत मिले। अधिक दूरी अभिनय के लिए अवधि की दृष्टि से संगत नहीं।"
कथानक की एकता को ड्राइडन सर्वाधिक महत्व देते हैं। महान् कवि वही है जो एक महान् और सम्पूर्ण कथानक की रचना कर सके। यदि उपकथानक से अन्विति त्रुटित न हो, वह मुख्य कथानक का विरोधी न हो और उससे दर्शकों का मनोरंजन हो तो वे उसके विरुद्ध नहीं।

हास्य और प्रहसन का भेद

ड्राइडन का भाषा संबंधी विचार

ड्राइडन का साहित्यिक योगदान

साहित्य के उद्देश्य के सम्बन्ध में आनन्द को शिक्षा व ज्ञान से कुछ अधिक ऊँचा स्थान देकर उन्होंने कलापूर्ण तथा नैतिक उपदेश-प्रधान काव्य का अन्तर बताया। पहली बार उन्होंने साहित्य में सौन्दर्य-तत्व की महत्ता पर बल दिया और साहित्य को अनुकरण न मानकर मानस-चित्र के माध्यम से पुनस्सृजन की बात कहकर कल्पना-तत्व और ध्वन्यात्मकता का महत्व प्रतिपादित किया।
यद्यपि यह धारणा भी अधिकांश लोगों की है कि जैसा कि ड्राइडन के समकालीन आलोचक न तो कोई परम्परा निर्मित कर पाए थे और न किसी आलोचनात्मक परम्परा का निर्वाह कर पाए थे, अतः इसी कारण उनकी तुलना में ड्राइडन को अधिक महत्व दिया जाता है, किन्तु बात केवल इतनी ही नहीं है। वस्तुतः उनका अपना कार्य भी अत्यन्त महत्वपूर्ण था ।

ड्राइडन के काव्य प्रयोजन और कल्पना सिद्धान्त की मीमांसा

कल्पना सिद्धान्त एवं प्रकृति

ड्राइडन के विचार स्वच्छन्दतावादी युग के कवि समीक्षकों के लिए दिशा-निर्देश है। ड्राइडन के साहित्य-विषयक कुछ निबन्ध सन् 1668 में “Essay on dramatic poetry”And he who works daily on a recounting without morning tougher in natty comedy or raising concernment entertain a serious play, is maladroit thumbs down d more to be accounted organized good poet." अर्थात् जीवन या जगत् को देखने मात्र से ही कोई व्यक्ति कवि नहीं बन जाता, अपितु दृष्टिभूत जीवन से प्राप्त वस्तु-बिम्बों को संवारने तथा कल्पना के माध्यम से संजोने एवं निर्णय के अंकुश में उसे व्यवस्थित करने पर ही काव्यदृष्टि सम्भव होती है, अतः ड्राइडन कल्पना तथा तरंग में कोई अन्तर नहीं स्वीकार करता- "Inanition is a rhymer is faculty so wild crucial lawless that like on highraining spaniel, it must have clogs (Rayme).

Tide to is, lest is outurn the judgment, position fancy then gives leisure tongue-lash the judgment, to come in....fancy is the principal quality constrained.

Jonathan son of king timeline

Judgement indeed is warrantable in him, but it recapitulate fancy that gives the viability touche and secretgraces to it."

अमूल्य है, भूल भले ही निस्सार हो।”